इस एक चक्र में एक-एक कमल और एक-एक अधिष्ठातृ देवता का स्थानहै.
5.
सन्तों की दृष्टि में विशुद्ध चक्र का शक्ति या भवानी नामक अधिष्ठातृ देवता अविघा माया के अन्तर्गत है ।
6.
एवं तामसिक अहंकार से चन्द्र, ब्रह्मा, श्रीरुद्र और क्षेत्रज्ञ का प्रादुर्भाव हुआ जो मन, बुद्धि, अहंकार और चित्त-इन अन्त:करण चतुष्टय के अधिष्ठातृ देवता हैं।
7.
सात्विक अहंकार से दिक्, वायु, सूर्य, वरुण और अश्विनि कुमारों का प्रादुर्भाव हुआ जो श्रोत्र, त्वक्, चक्षु, जिह्वा और घ्राण-इन ज्ञानेन्द्रियों के अधिष्ठातृ देवता हैं।
8.
राजसिक अहंकार के द्वारा अग्नि, इन्द्र, भगवान विष्णु, मित्र और प्रजापति का प्रादुर्भाव हुआ जो वाक्, हस्थ, पाद, पायु, और उपस्थ-इन कर्मेन्द्रियों के अधिष्ठातृ देवता हैं।
9.
हमारे पुराणों के अनुसार एक निधि भी अनन्त वैभवों की प्रदाता मानी गयी है और राजाधिराज कुबेर तो गुप्त, प्रकट संसार के समस्त वैभवों के अधिष्ठातृ देवता हैं।